28 मार्च, 2013

अब्र ए ख़ुशबू - -

रूकती कहाँ हैं रोके, उड़ती हुईं  ख़्वाब आलूद 
तितिलियाँ, अपनी हथेलियों में बंद कर 
ले, जुगनू की मानिंद महके हुए 
कुछ मेरे जज़्बात, इक 
लम्स, जो बदल 
जाए मेरी 
ख़ुश्क तक़दीर, ख़ुदा के लिए किसी दिन - - 
इक पल के वास्ते बिखर जा अब्र 
ए ख़ुशबू की तरह - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 

ART BY DAVID JAY SKIPER

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