वो कच्ची उम्र की नादानियाँ,
कुछ छोटे छोटे प्लास्टिक के बर्तन,
ले आओ मिटटी के दीये बरामदे में
कहीं हैं पड़े, पिछले दिवाली के
चलो चलें जीने के नीचे या
पलंग के किसी एक कोने में
नन्हीं आँखों की दुनिया बसायें दोबारा
तुम फिर पुकारो मुझे उसी
मीठी मासूम मुस्कान लिए
पप्पू के पापा, मैं कहूँ तुमें पप्पू की
मम्मी, एक रिश्ता जो कभी हो
न सका, सोचो ज़रा उसी अंदाज़ में
कि हम लौट जाएँ उसी सुन्दर
बचपन की वादियों में
इस मायावी पृथ्वी से कहीं अधिक
खूबसूरती है उस जहाँ में,
कल्पना करो कि हम फिर से छूएं
इक दूजे को पवित्र भावनाओं से,
उसी निश्छल हँसी में तलाशें फिर
खोई हुई ख़ुशियाँ, चलो फिर एक बार
घर घर खेलें ---
--- शांतनु सान्याल
behtrin rchnaa . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंakhtar bhai shukriya - naman sah
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