28 जनवरी, 2011

भूली सुबह की तरह


अभी अभी है चाँद ढला, दूर पहाड़ों में
चाँदनी फिर भी ढकी सी है दूर तक,
तलहटी में उभरें हैं, साँसों के
बादल मन चाहे तुम्हें
देखूं अन्धेरें में
क़िस्मत
की
तरह, बन जाओ कभी तुम रहनुमां, भूल
जाऊं मैं मुश्किल भरे ज़िन्दगी के
रास्ते, कौंधती हैं बिजलियाँ
पूरब में कहीं, बरस भी
जाओ किसी दिन,
दिल की
बस्तियां उजड़ने से पहले,कुछ तो मिले
सुकूं,के उड़ भी आओ कहीं से मसीहा
की  तरह, हर क़दम बोझिल के
टूट टूट जाए  ख्वाबों की
सीढियां, मैं चाहूँ तुम्हें
छूना और तुम हो
के बेख़बर
भूली
सुबह की तरह,
- - शांतनु सान्याल      


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