26 दिसंबर, 2010

ख़ुदा हाफिज़

सलीब तो उठाली है,
 ज़िन्दगी न जाने और क्या चाहे 
मुझे बिंधते हैं वो तीर व् भालों से 
बेअसर हैं तमाम सज़ाएँ , मैं बहुत पहले 
दर्द को निज़ात दे चुका, पत्थर से मिलो 
ज़रूर मगर फ़ासला रखा करो, 
न जाने किस मोड़ पे क़दम  डगमगा जाएँ,
वो ख़्वाबों की बस्तियां उठ गईं 
मुद्दतों पहले, हीरों के  खदान हैं 
ख़ाली, सौदागर लौट चुके ज़माना हुआ 
दूर तलक है मुसलसल  ख़ामोशी 
बारिश ने भर दिए वो तमाम खदानों को 
वक़्त ने ढक दिए, धूल व् रेत से 
वो टूटे बिखरे मकानात, कहाँ है 
तुम्हारा वो गुलाबी रुमाल, फूल व् 
बेल बूटों से कढ़ा हुआ मेरा नाम ,
कभी मिले ग़र तो लौटा जाना 
आज भी हम खड़े हैं वहीँ, जहाँ  
पे तुमने ख़ुदा हाफिज़ कहा था इकदिन, 
---- शांतनु सान्याल 













2 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारा वो गुलाबी रुमाल, फूल व्
    बेल बूटों से कढ़ा हुआ मेरा नाम ,
    कभी मिले ग़र तो लौटा जाना
    आज भी हम खड़े हैं वहीँ, जहाँ
    पे तुमने ख़ुदा हाफिज़ कहा था इकदिन,

    बहुत सुन्दर .....


    यहाँ आपका स्वागत है

    गुननाम

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  2. sangeeta ji apne pass kar diya bas aur kya chahiye -gumnam, gum rahe to behtar,naman sah, dhanywad

    जवाब देंहटाएं

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