01 दिसंबर, 2010

अग्नि वृत्त

कुछ आकृतियाँ शैल चित्रों की तरह जीवन भर अर्थ
की खोज में भटकती हैं, व्यक्तित्व के परिधि में,
त्रिज्या थे वो सभी भावनाएं केंद्र बिंदु को भेद गईं
ज्यामितीय संकेतों ने छला, जीवन गणित था या
कोई महा दर्शन, हम तो केवल छद्म रूपी शतदल
में यूँ उलझ के रह गए कि निशांत का पता न चला,
क्षितिज के आँखों से जब काजल धुले, समुद्र तट
बहुत दूर किसी अपरिचित दिगंत में खो चुका,
प्रतिध्वनियाँ लौट आईं अक्सर हमने तो आवाज़ दी,
किसने किसका हाथ छोड़ा, कौन कहाँ खुद को जोड़ा
बहुत मुश्किल है,समीकरणों का शून्य होना -
किस के माथे दोष मढ़े हमने स्वयं अग्नि वृत्त घेरा,
- - शांतनु सान्याल

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ..ज़िंदगी को गणित में बाँध दिया ...बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  2. संगीता जी दिल की गहराइयों से शुक्रिया /

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  3. समीकरणों का शून्य होना किस के माथे दोष मढ़े हमने स्वयं अग्नी वृत्तघेरा,बहुत गहरा प्रश्न किया है आपने...

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  4. दिल की अथाह गहराइयों से सभी मित्रों का धन्यवाद व् मार्गदर्शन की ख्वाहिश, - सस्नेह //

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