१. नीचे है, अथाह खाई लो मैं खड़ा हूँ
किनारे, क्या है दिल में तुम्हारे ख़ुदा जाने,
बेपरवाह ये ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जाये
सामने हो तुम, उम्र है कितनी ख़ुदा जाने,
२. ओष की बूंदें थीं या दर्द के क़तरे
पंखुडियां गुलाब की क्यूँ झुक सी गयीं,
कोई जिस्म पे चला है दहकते पांव
देखते ही उनको सांसें क्यूँ रुक सी गयीं,
३. हमने तो उम्र का बिछौना दे दिया
सर्दियाँ थीं सदीद, चादर नाकाम रही,
तुमने ओढ़ ली ऊनी तश्मीना कम्बल
यहाँ सिहरन भरी सुबह ओ शाम रही,
४. मुस्कुराने के लिए कोई तो सबब होता
क्या करें बेवजह ही मुस्करा गए,
अश्क छुपाना भी इक सलाहियत है
जान कर भी हम दरवाज़े से टकरा गए,
५. लोग जो हँस पड़े हमने भी साथ दिया
किस लिए इतनी ख़ुशी थी मालूम नहीं,
हम ख़ुद को तलाशते रहे या उनको
ज़िन्दगी थी या ख़ुदकुशी मालूम नहीं,
६. भीड़ में भी थे सहमे सहमें तन्हां तन्हां
किसी ने पुकारा ज़रूर, पहचान न पाए,
कब तन्हाईयाँ घिर आयीं घटा बन कर
भीगते गए लेकिन हम उन्हें जान न पाए,
७. लबों को किसी ने छुआ ज़रूर था
बंद पलकों ने कोई ख़्वाब देखा होगा,
गर्म सांसों में नमी घोल गया कोई
सीने में डूबता कोई माहताब देखा होगा,
- शांतनु सान्याल
11 दिसंबर, 2010
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सुन्दर रचना. भारतीय भाषाओं पर आप की नयी पोस्ट दिख नहीं रही है.
जवाब देंहटाएंबहोत सारा धन्यवाद - दरअसल वक़्त की कमी की वजह से ज्यादा लिखना थोड़ा मुश्किल होता है, आपका ब्लॉग मल्हार देखी, बहुत ही सुन्दर है, अभिनन्दन / नमन सह
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