खुले पिंजरे की अपनी अलग है मुग्धता, मोह का पंछी चाह कर भी उड़ना
नहीं चाहता, स्पृहा प्रणय न
जाने क्या है उस अदृश्य
कारागृह के चुम्बक
में, ठहरा हुआ
एक अरण्य
स्रोत है
जो
अपनी जगह से बहना नहीं चाहता, मोह
का पंछी चाह कर भी उड़ना नहीं
चाहता । विस्तृत नीलाकाश
अक्सर फेंकता रहता है
इंद्रधनुषी फंदे, दिन
और रात के मध्य
घूमता रहता
है सपनों
का
बायस्कोप, सुदूर नदी पार सुलगता सा दिखे
है पलाश वन, मद्धम मद्धम रौशनी लिए
सिहरित से हैं अधरों के दीए, कोई
दे रहा है नाज़ुक उंगलियों से
दस्तक, एक मौन आवाज़
खींच लेता है अपने
बहुत अंदर, प्राण
उसे छोड़ कर
किसी
और
से हर हाल में जुड़ना नहीं चाहता, मोह
का पंछी चाह कर भी उड़ना
नहीं चाहता ।
- - शांतनु सान्याल
भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 फरवरी 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंक्या बात है
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंदस्तक, एक मौन आवाज़
खींच लेता है अपने
बहुत अंदर, प्राण
उसे छोड़ कर
किसी
और
से हर हाल में जुड़ना नहीं चाहता, मोह
का पंछी चाह कर भी उड़ना
नहीं चाहता ।
आभार
सादर
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
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