06 नवंबर, 2021

वाष्पित बिम्ब - -

ओस में धुली हुई है निगार ए सहर,
रात के सीने में हैं दफ़्न, कितने
ही अनकहे अफ़साने, कोई
याद नहीं रखता गुज़रे
हुए अंधेरे के गुम
नाम ठिकाने,
ज़रा सा
सांस
ले लूँ फिर ज़िन्दगी करे आगाज़ ए
सफ़र, ओस में धुली हुई है
निगार ए सहर। नेपथ्य
में कहीं छोड़ आया
हूँ मैं अपना
असली
चेहरा,
जो लोग देखना चाहें वो दरअसल है
मायावी बिम्ब मेरा, यूँ भी इस
चकाचौंध की दुनिया में,
झूठ और सच के
तराज़ू पर
पड़ता
नहीं
कोई असर, ओस में धुली हुई है - -
निगार ए सहर।
* *
- - शांतनु सान्याल

3 टिप्‍पणियां:

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past