28 जनवरी, 2020

पुनःच - -

छाया - आलोक के बीच कहीं
ज़िन्दगी उभरती है ले कर
नई संभावनाएं, दहलीज़
पे मेरे न जाने कौन,
सुबह - सवेरे रख
गया अदृश्य
शुभ -
कामनाएं। फिर कच्ची धूप में
उड़ चली हैं तितलियां, फिर
किसी ने दी है मुझे एक
मुस्त महकती हुईं
तसल्लियां,
फिर
तुम्हारी आँखों में उभर चले हैं
सजल अनुरागी भावनाएं।
- शांतनु सान्याल

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-01-2020) को   "तान वीणा की माता सुना दीजिए"  (चर्चा अंक - 3595)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past