28 जनवरी, 2020

हमेशा की तरह - -

पत्ते गिरने का मौसम नहीं रुकता,
वक़्त की रेल गुज़रती है
निःशब्द अपने गंतव्य
की ओर, पार्क
के बेंच
पर पड़े सूखे पत्तों में कहीं खो
जाते हैं यादों के तहरीर,
कुछ मौन संबोधन,
कुछ नेह स्पर्श,
कोहरे की
तरह
जिस्म ओ जाँ को छूते ही
अदृश्य हो जाते हैं
धीरे - धीरे,
रहता है
क़रीब सिर्फ़ एक अहसास
निगाहों के कोरों में
कुछ लवणीय
जल बिंदु
और
विलीन होती वृक्षों की विराट
परछाइयां, उतरती है शाम
रोज़ बोगनवेलिया के
झुरमुटों से लेकर
मायावी
रूप।
- - शांतनु सान्याल

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 28 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।

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