12 जनवरी, 2020

अनंत नग़मा - -

हथेली में कहीं आज भी है
रौशनदान से उतरती एक
बूंद रौशनी की दुनिया,
अलस दुपहरी में
जैसे उतरती
हों नीम
से निःशब्द परछाइयां । यूँ
तो ज़िन्दगी के आसपास
खंडहरों की कमी नहीं,
फिर भी न जाने क्यूं
दिल के आईने में
धूल जमी नहीं।
सब कुछ
बदल
जाता है, चाहे चेहरा हो या
चश्मा, एक मीठा सा
एहसास वक़्त के
साथ हो जाता
है अनंत
नग़मा।
- शांतनु सान्याल






2 टिप्‍पणियां:

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past