एक दिन अचानक गुलाब की -
तरह खिले बिहान ! हर
चेहरे पर हो ताज़गी
और जीने का
इत्मीनान।
एक
सुबह हो यूँ दुआओं वाली शबनम
से तरबतर, आईना छुपा ले
अपने सीने में झुर्रियों के
निशान। कौतूहल
मेरा फिर ढूंढ
लाए वो
गुमशुदा लड़कपन, दरवाज़ा
खोलते ही नज़र आए
सपनों की दूकान।
दौड़ा ले जाए
मुझे,
फिर किसी फेरीवाले की पुकार,
ख़रीद लाऊँ कोई मीठा
अहसास,छोटे
मोटे सामान।
मीठी
झिड़कियां सुने हुए यूँ तो एक
उम्र गुज़र गई, वही मासूम
नादानियाँ फिर सर पे
उठाए आसमान।
इतनी भी
दूरी
ठीक नहीं ये सच है कि मशीन
हैं सभी, किसी बहाने ही
सही ग़लत नहीं
रखनी जान
पहचान।
अगरचे वक़्त की बेरहमी ने - -
मुझे कहीं का न छोड़ा,
न जाने कौन है
जो अक्सर
मुश्किल
कर
जाए आसान।
* *
- शांतनु सान्याल
तरह खिले बिहान ! हर
चेहरे पर हो ताज़गी
और जीने का
इत्मीनान।
एक
सुबह हो यूँ दुआओं वाली शबनम
से तरबतर, आईना छुपा ले
अपने सीने में झुर्रियों के
निशान। कौतूहल
मेरा फिर ढूंढ
लाए वो
गुमशुदा लड़कपन, दरवाज़ा
खोलते ही नज़र आए
सपनों की दूकान।
दौड़ा ले जाए
मुझे,
फिर किसी फेरीवाले की पुकार,
ख़रीद लाऊँ कोई मीठा
अहसास,छोटे
मोटे सामान।
मीठी
झिड़कियां सुने हुए यूँ तो एक
उम्र गुज़र गई, वही मासूम
नादानियाँ फिर सर पे
उठाए आसमान।
इतनी भी
दूरी
ठीक नहीं ये सच है कि मशीन
हैं सभी, किसी बहाने ही
सही ग़लत नहीं
रखनी जान
पहचान।
अगरचे वक़्त की बेरहमी ने - -
मुझे कहीं का न छोड़ा,
न जाने कौन है
जो अक्सर
मुश्किल
कर
जाए आसान।
* *
- शांतनु सान्याल
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