29 मार्च, 2018

सदियों का दर्द - -

वो सभी थे शामिल आधी
रात की साजिश में,
फूलों की ख़ुश्बू
हो या
चाँद का डूबना उभरना,
मोम की तरह ख़ाक
हुई रात, नींद
की
आज़माइश में। बुझते
चिराग़ों ने हमें
गिर के
संभलना है सिखाया, कुछ
रौशनी अक्सर रहती
है बाक़ी, जीने की
 गुंजाइश में।
तुम चाह
कर भी मिटा नहीं सकते
 इन्क़लाब ए जुनूं,
सदियों का दर्द
होता है भरा
इनकी
इक अदद पैदाइश में। - -

* *
- शांतनु सान्याल


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