काश, सजल अहसासों का - -
कोई मरूद्वीप होता
अंतरतम के अंदर,
तो शायद
भटकती हुई सांसों को मिल
जाती कुछ पलों की
राहत। वही
दालान,
वही दर ओ दीवार, वही आईने
की नामुराद हसरत,
परछाइयों के
शहर में
ख़त्म कहाँ होती हैं चाँदनी रात
की चाहत। पतझड़ की है
अपनी ही मजबूरियां,
क़ुदरत से लड़ना
आसां नहीं,
हर कोई है
अपनी
अपनी जगह इक अदाकार - - -
मुक़्क़दर के मातहत।
* *
- शांतनु सान्याल
कोई मरूद्वीप होता
अंतरतम के अंदर,
तो शायद
भटकती हुई सांसों को मिल
जाती कुछ पलों की
राहत। वही
दालान,
वही दर ओ दीवार, वही आईने
की नामुराद हसरत,
परछाइयों के
शहर में
ख़त्म कहाँ होती हैं चाँदनी रात
की चाहत। पतझड़ की है
अपनी ही मजबूरियां,
क़ुदरत से लड़ना
आसां नहीं,
हर कोई है
अपनी
अपनी जगह इक अदाकार - - -
मुक़्क़दर के मातहत।
* *
- शांतनु सान्याल
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