15 मई, 2015

अनबुझ प्यास - -

कहाँ ज़िन्दगी में, हर ख़्वाब
को हक़ीक़त की ज़मीं
मिलती है,
कोई भी नहीं मुकम्मल इस
जहां में, कुछ न कुछ
तो कमी
रहती है,कभी भरे बरसात में
भी रहती है, सदियों
की अनबुझी
प्यास,कभी इक बूँद के लिए
सुलगती साँस थमी
रहती  है,
न बढ़ा ख़्वाहिशों की फ़ेहरिश्त
इस तरह कि ज़िन्दगी ही
कम पड़ जाए,
जिस्म तो है महज मामला ए
ख़ाक  लेकिन न जाने
क्यूँ रूह -
ए - तिश्नगी बनी रहती है, - -

* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by alisa wilcher

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