19 मई, 2015

अपनापन - -

नाम - निहाद थे वो तमाम दावे उनके,
कोई किसी के लिए नहीं है मुंतज़िर
यहाँ, जो छूट गए भीड़ में कहीं,
रफ़्ता - रफ़्ता वक़्त उन्हें
इक दिन भूला
देता है।
न बढ़ा ख़ुलूस ए शिद्दत इस क़दर मेरे
दोस्त, कि निगाहों में बेवक़्त ही
अब्र छा जाएँ, ये अपनापन
है बहोत जानलेवा,
हँसते - हँसते
इक दिन
बहोत रूला देता है। जो छूट गए भीड़
में कहीं, रफ़्ता - रफ़्ता वक़्त
उन्हें इक दिन भूला
देता है।

* *
- शांतनु सान्याल
 http://sanyalsduniya2.blogspot.in/

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