अनजाने ही हम बहुत दूर यूँ आ गए कि
मुमकिन नहीं, बाहमी क़रार तोड़ देना,
दर चश्म अंदाज़ हैं, उभरते कई ख़्वाब
मुश्किल है,लेकिन सारा जहाँ छोड़ देना,
तूही नहीं, इक मक़सद ए ज़िन्दगी मेरी,
आसां कहां, सब ख़ुशी तुझसे जोड़ देना,
तरजीह की कसौटी है, यूं उलझन भरी -
नहीं लाज़िम ज़िंदगी का रुख़ मोड़ देना !
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by Petra Ackermann
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