इक इंतज़ार जो दे जाए ज़िन्दगी को
ख़ुशगवार मानी, इक शाम
कभी ग़लती से ही सही
लिख जा मेरे
नाम - -
कब से हैं मअतर जज़्बात के दरिचे,
कोई लम्हा रख जा मेरी सुर्ख़
निगाहों में शबनमी
ख़्वाब की
तरह,
मालूम है मुझे रेगिस्तां की हक़ीक़त !
कभी किसी दिन के लिए मेरी
जां, भिगो जा पल दो पल
के लिए वीरां पड़े
ज़िन्दगी के
रास्ते,
किसी भूले हुए बादलों के मानिंद, कि
तकती हैं, उदास आँखें तेरी
इक हमदर्द नज़र के
लिए - -
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद प्रिय मित्र - नमन सह
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