अलाव की तरह
मैंने ख़ुद को है, जलाया अलाव की तरह,
उजाला जो दे जाय, इक हलकी सी हंसी,
जीवन को है बिखेरा मैंने बहाव की तरह,
चाह कर भी छू न सके वो दामन मेरा -
बाअज़ बढ़ाया हाथ हमने नाव की तरह,
कोई पहलु उसे अक्सर उलझाये रहा,वो
अक्सर मुझसे मिला भटकाव की तरह,
वादी की ख़ामोशी रही बरक़रार मुद्दतों
अपना रिश्ता यूँ रहा धूप छांव की तरह,
आज भी देखता है शिफ़र आँखों से मुझे,
दिल में है इश्क़ किसी ठहराव की तरह,
-- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें