18 जनवरी, 2012

नज़्म - - अंदाज़े वफ़ा है जुनूनी

तू वही है जो अँधेरे में भी दिखाई दे जाए,
इस रात की उफनती सांसों में मेरा
भी ज़िक्र हो शायद, तू फिर
कहीं से आये थाम ले
मेरी बाहें,  डूबने
से पहले
उबार ले जाए,लोग कहते हैं  मेरा अंदाज़े
 वफ़ा  है जुनूनी, पिघलते रेत की
मानिंद है मेरा वजूद
बेमिशाल, किसी
की चाहत में
ज़िन्दगी
ढलती है गर्म भट्टियों से गुज़र कर, यूँ
कांच की तरह खुबसूरत, ग़र
हाथ से फिसल जाए,
तो उम्र भर टूटने
का सदमा
बना रहे,  
डूबते तारों ने दिया था तेरे घर का ठिकाना !
तेरी इक झलक में यूँ ज़माना गुज़र
गया हमें ख़बर ही नहीं, हम
आज भी वहीँ हैं खड़े
जहाँ से ज़िन्दगी
तुम्हारे
हमराह हो गई, आज भी मुन्तज़िर है संगे
साहिल  तेरे इक लम्स के लिए, आज  
भी दिल को है अज़ाब से उभरने
की ख्वाहिस, तपते ज़मीं
से उठीं हैं दुआएं,
 कभी तो हो
तेरी नज़र
मेहरबां, कभी तो मेरी अक़ीदत यक़ीं पाए,   
जिस्मानी मेल से उठ कर है कहीं
उस मुहोब्बत के मानी, कभी
तो उसे क़बूल करे, कभी
तो मेरी ज़ात का दम
भरे, कुछ पल के
लिए ही सही,
मज़लूम ज़िन्दगियों को तेरे साए में राहत मिले !

- - शांतनु सान्याल  





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past