06 नवंबर, 2011


भीगी ख्वाहिश 

मुद्दतों बाद फिर बारिश ने भिगोया दिल की 
सूखी ज़मीं, कहीं से तुमने फिर पुकारा 
है मुझे, सज चले हैं अपने आप 
अहसासों के टीले, फिर 
खिलना चाहें काँटों 
से झांकते हुए 
कैक्टस के 
फूल,
ज़िन्दगी करवट बदलती सी लगे है,भीगे 
ख़्वाब है बेताब गले मिलने को मेरे,
दामन में बूंदों की लड़ी लिए 
बैठी है रात, लेकिन 
निगाहों से जैसे 
नींद है खफ़ा,
नाराज़,
चाँद देखने की ज़िद लिए बैठा है, बहुत 
नादाँ है दिल मेरा ---

-- शांतनु सान्याल  
 http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
PAINTING BY   -Don Valeri Grig de Kalaveras 

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