वक़्त मिले संवरने का मुझे,
तेरी ख्वाहिश में है न
जाने कौनसा
तिलिस्म,
सांस टूट कर भी चाहती है आसमां छूना,
ये इम्तहां मेरे लिए कोई नया नहीं,
लेकिन हर एक पर्चे पे ज़िन्दगी
पूछती है लाख सवाल, हर
सवाल का जवाब होता
है ज़िन्दगी का
निचोड़,
इस आग की धारे में चलने की सज़ा ही
आख़िर मुझे मिट्टी से सोना कर
गई, वर्ना दर्द के चमक थे
फ़िके, हर एक ख़्वाब से
पहले, रात पूछती
है मेरी
तमन्ना,
सुबह है बर्बाद आशिक़ मेरा, रहता है खड़ा
चाक गिरेबां, कहीं किसी बस्ती में,
कि ज़िन्दगी चाहती है उसे
उसका हक़ लौटाना,
कुछ अश्क
लबरेज़
ख़त, मुहब्बत का भरम,सीने की जलन -
और एक मुश्त साँसों की गर्मियां,
सुना है कि उसे है दम की
शिकायत, हो भी न
क्यूँ कर, उम्र
भर
वो तकता रहा एक टक, मेरे चेहरे की तरफ.
-- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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painting by Walfrido
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