आसां नहीं ये दोस्त -
इन गलियों न देखा कभी ईद ओ दिवाली,
इक तीरगी है जो मुसलसल बहती है -
रग़ों से गुज़र कर दिलों तक, कि
उन ख़्वाब के खिलौने, जो
शीशों में हैं ढले, न दे
मुझे फिर वही
खुबसूरत
तोहफ़ा, टूट जायेंगे सभी, नाज़ुक हैं ये दिलों के
रिश्ते, अक्श चाँद का था आरज़ी, पलक
झपकते रात बिखेर जायेगी अँधेरा,
सीड़ियों से लगता है बहुत
क़रीब कहकशां का
शहर, लेकिन
मुझे
मालूम है, ब्रह्माण्ड की हकीक़त, कि शिफ़र में
झूलतीं हैं अहद वादों की पर्चियां, तुम
जी लो खुद के लिए यही कम नहीं,
न खाओ क़सम किसी और के
लिए, आसां नहीं इतना
कि लुटा जाओ
दुनिया
मुहोब्बत के लिए,
-- शांतनु सान्याल
rainbow_galaxy_Nina Yang Painting
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