एक अजीब सी लाजवंती कशिश है
हवाओं में, फिर खिल उठे हैं
पलाश सुदूर मदभरी
फ़िज़ाओं में।
यूँ तो
ज़िन्दगी में उधेड़बुन कुछ कम नहीं,
फिर भी बुरा नहीं, कभी कभार,
रंगीन ख़्वाबों को यूँ बुनना,
अलसभरी निगाहों
में। न पूछ यूँ
घूमा फिरा
कर
इल्म हिसाब ऐ दोस्त, हमेशा सरल -
रेखा पर चलना नहीं आसान,
बहुत सारे मोड़ होते हैं
ज़िन्दगी के राहों
में। ज़रूरी
नहीं कि,
हर
बार उछाला हुआ सिक्का हो विजयी
हमारी चाहों में।
* *
- शांतनु सान्याल
हवाओं में, फिर खिल उठे हैं
पलाश सुदूर मदभरी
फ़िज़ाओं में।
यूँ तो
ज़िन्दगी में उधेड़बुन कुछ कम नहीं,
फिर भी बुरा नहीं, कभी कभार,
रंगीन ख़्वाबों को यूँ बुनना,
अलसभरी निगाहों
में। न पूछ यूँ
घूमा फिरा
कर
इल्म हिसाब ऐ दोस्त, हमेशा सरल -
रेखा पर चलना नहीं आसान,
बहुत सारे मोड़ होते हैं
ज़िन्दगी के राहों
में। ज़रूरी
नहीं कि,
हर
बार उछाला हुआ सिक्का हो विजयी
हमारी चाहों में।
* *
- शांतनु सान्याल
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
६ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंखूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंवाह सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
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