29 जुलाई, 2014

बाज़ार ए हिराज - -

 न जाने कैसी बेबसी थी उनको,
देखता रहा यूँ ख़ामोश
खड़ा सारा समाज,
ये कैसी
तहज़ीब ओ सफ़ाक़त का मंज़र
था नज़र के सामने, कि फिर
सजी, खुलेआम बाज़ार
ए हिराज,
इस दौर को क्या नाम दें, हर - -
चीज़ यहाँ है बिकने को
तैयार, न रहा अब
कोई शाहजहाँ,
न कोई
रूहे मुमताज़, कहने को यूँ तो
है हर दिल में यहाँ, इक
ताजमहल, ख़ूबसूरत
बहोत लेकिन
बग़ैर
आवाज़, बेड़ियों में घुटती हुई
हो जैसे परवाज़।

* *
- शांतनु सान्याल
अर्थ : 
तहज़ीब ओ सफ़ाक़त  - सभ्यता और संस्कृति
बाज़ार ए हिराज - नीलामी बाज़ार
परवाज़ - उड़ान
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by yuko nagayama

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