असंख्य आकाश प्रदीप के मध्य टूटे हुए तारे की ख़बर कोई नहीं
रखता, सारा शहर है
रौशनी में नहाया
हुआ, फूट
रहे हैं
गली चौबारों में रंगीन अग्नि वलय,
धुंध में भटके हुए पंछियों को
अपने घर कोई नहीं
रखता, असंख्य
आकाश प्रदीप
के मध्य टूटे
हुए तारे
की
ख़बर कोई नहीं रखता । न जाने
कितनी आंखों को आज भी
है क्षितिज में उभरती
हुई हल्की रौशनी
की तलाश,
न जाने
कितने
ही
दिलों में हैं बाक़ी आज भी एक
ख़ूबसूरत दीवाली की आस,
हर एक निगाह देखती
है झिलमिलाते हुए
आसमां की
ओर,
ज़मीं में बिखरे हुए जुगनुओं पर नज़र
कोई नहीं रखता, असंख्य आकाश
प्रदीप के मध्य टूटे हुए तारे
की ख़बर कोई नहीं
रखता ।
- - शांतनु सान्याल

बहुत सुंदर रचना सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २२ अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सार्थक सुंदर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसुंदर | दीप पर्व शुभ हो मंगलमय हो |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना, शुभ दीपावली
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
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