11 अक्टूबर, 2025

उजालों का शहर - -

उतार चढ़ाव कम न थे ताहम ख़ूबसूरत

ज़िन्दगी का सफ़र रहा, हर मोड़
पर थे सवालिया निशान
बड़ा दिलकश
रहगुज़र
रहा ।
अनगिनत बार ज़िन्दगी ने पाई सज़ा
बारहा रस्म ए रिहाई भी, बूंद
भर की ख़्वाहिश थी
कहने को हद
ए नज़र
समंदर
रहा ।
कुछ अंध गलियों में आज भी रौशनी
का नाम ओ निशां नहीं, सितारों
की मजलिस में कहीं गुम
जगमगाता सा ये
शहर
रहा ।
न जाने वो कौन था जिसने दिखाई
थी उम्मीद की इक किरण,
दोबारा वो न मिला
कहीं जिसका
इंतज़ार
मुझे
ज़िन्दगी भर रहा - -
- - शांतनु सान्याल


1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 13 अक्टूबर 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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