21 फ़रवरी, 2025

पलाश पथ - -

शून्यता के भीतर जो अदृश्य लहर हैं मौजूद

उसी अंध- प्रवाह में तुम्हें करता हूँ मैं तलाश,

भीड़ में खो जाने की कला ही है जिजीविषा
फिर भी लौट आता हूँ अंततः तुम्हारे ही पास,

आकाशगंगा की तरह है चाहतों का अंतरिक्ष
देह - प्राण से हो कर गुज़रता है प्रणय प्रवास,

अक्सर ख़ुद को भुला करते हैं अन्य को याद
दस्तक नहीं होती बस आगंतुक का है क़यास,

इसी पल में निहित है सभी ऋतुओं का आनंद
उल्लसित हृदय के लिए हर दिन रहे मधुमास,

सीमित विकल्प हैं फिर भी गुज़रना है लाज़िम
जीवन के सफ़र में हमेशा नहीं खिलते पलाश ।
- - शांतनु सान्याल

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