अपने अंदर छुपे हुए ग्रंथि का आविष्कार करें, प्रतिबिंबित परिभाषा को दिल से स्वीकार करें,
न तुम हो पारसमणि न मैं कोई शापित पाषाण,
दर्पण को रख सर्वोपरि आपस में व्यवहार करें,
मिट्टी का देह ले कर पत्थर के शहर में रहना है,
ज़रा सी चोट से सहम जाएं इतना न प्यार करें,
निगाहों की पट्टियां न खुले तराज़ू के झोंकों से,
हृदय तल के खंडित मंदिरों का पुनरूद्धार करें,
एक ही असमाप्त पथ के हम सभी हैं सहयात्री,
दुःख सुख के साए में टूटे स्वप्नों को साकार करें,
- - शांतनु सान्याल