24 नवंबर, 2023

शून्य हिस्सा - -

 तक़सीम का दायरा था हद ए नज़र के पार,

बिखरना लिखा था तक़दीर में हर एक बार,


कुछ भी न रहा नज़दीक इक सांस के सिवा,

चिराग़ बुझ चले हैं न रहा किसी का इंतज़ार,


वादियों में बिछ चले हैं, सुदूर गुलों के चादर,

किसी के लिए नहीं रुकता रस्म ए कारोबार,


हर किसी की होती है अलग अलग तरजीह,

भला बुरा जो भी हो, हम ख़ुद हैं जवाबदार, 


कोई वादा नहीं निभाता सभी रिश्ते हैं रस्मी,

यहां किसी को नहीं किसी से कोई सरोकार,


सभी सच जान कर, भी ज़िंदगी रुकती नहीं,

निरंतर आसमां में सजता है तारों का दरबार,


- शांतनु सान्याल

23 नवंबर, 2023

विदूषक की तरह - -

किसी अंधकूप की तरह, सीने में सुबह की धूप छुपा रखी थी,
प्रेम था या अथाह अंधकार नम आँखों में दीप जला रखी थी,

अदृश्य फैली हुई बाहें थीं, या झूलती मोह की जर्जर सीढ़ियां,
जीवन - मरण के मध्य कुछ ही पलों की दूरत्व बना रखी थी,

मद्धम रौशनी ऐसी जिसे परिभाषित करना भी साध्य के परे था,
सत्य मिथ्या के रंगों को उस ने, इस तरह एकत्र मिला रखी थी,

आवेश के वो क्षण, जो दिग्भ्रमित कर जाएं मायामृग की तरह,
शिकारी ने सूखे पत्तों के नीचे, जानलेवा ज़ंजीर बिछा रखी थी,

किसी और के हाथों है डोर, नियति को कोसती रही कटी पतंग,
ज़हर बुझे तीरों के मध्य, इक बूंद जीने की चाह मिला रखी थी,

ज़िन्दगी भर यूँ तो चलता रहा, जीत हार का अंतहीन सिलसिला,
विदूषक की तरह, हम ने भी चेहरे पर कुछ जलरंग लगा रखी थी।
- शांतनु सान्याल
 

21 नवंबर, 2023

जीने की चाह - -

 न जाने कितने अभियोग, न जाने कितनी

सज़ाएं, हज़ार कोड़ों के अदृश्य

निशान, फिर भी जीने की 

चाहत कम नहीं होती,

पैरों में जकड़े हों 

चाहे जितने

भी जंज़ीर

ज़िन्दगी

के रास्ते हैं अंतहीन अपनी जगह, असंख्य

विश्वासघात, मृगतृष्णा के कुहासे हैं दूर

तक, कांच के टुकड़ों पर नाचती

है ज़िन्दगी लहूलुहान क़दमों

से, फिर भी दिल की

झोली से शबनमी

राहत कम नहीं

होती, फिर 

भी जीने 

की 

चाहत कम नहीं होती ।

- - शांतनु सान्याल


11 नवंबर, 2023

प्रीत के दीये - -

हिसाब किताब अर्थहीन सभी अंतमिल हैं  बेमानी,

सूखे रिश्तों के बेल, दूर तक है, छायी हुई वीरानी,

ताहम दिल को रहता है, रौशन शाम का इंतज़ार,

दीये जलाओ प्रीत के, लहरों में बसी है ज़िंदगानी,

न जाने किस बूंद पे है ठहरा हुआ तुम्हारा ग़ुरूर,

कौन रहा अनंतकाल तक बस कुछ पल की है रवानी,

- शांतनु सान्याल

04 नवंबर, 2023

चाहतों का असर - -

चाहे कोई कितना भी
उठ जाए आसमां 
की ओर,
हर हाल में उसे लौटना
है इक दिन धूसर
जहां की
ओर।
वो तमाम रंग रोगन,
रफ़्ता-रफ़्ता हो
चले हैं फ़ीके,
ज़िन्दगी
बढ़ चली है फिर आज,
किसी अदृश्य
मेहरबां
की
ओर। तुम्हारी चाहतों
का असर है जो
अपनी उम्र
लम्बी
हो गई, वरना कब से
हम भी गुज़र
जाते
सुदूर जाते कारवां की
ओर।
* *
- शांतनु सान्याल


03 नवंबर, 2023

कोई तुझसा नहीं - -

गुज़िश्ता रात की बारिश,
और आख़री पहर में
यूँ नींद का टूट
जाना,
कोई दस्तक गुमशुदा
अक्सर हमें सोने
नहीं देता।
हमारे
इतराफ़ है हर इक चीज़
यूँ तो ख़ूबसूरत और
दिलकश, फिर
भी न
जाने क्यूँ दिल है कि
किसी और का
होने नहीं
देता।
ये तुम्हारे चाहत का
जुनून है, या
परवाने
की आख़री उड़ान, हर
हाल में हमें यूँ धुंध
में खोने नहीं
देता।
अक्सर मैं लौट आता
हूँ यूँ ही ख़ाली हाथ
बाग़ ए अर्श से,
तेरा इश्क़
बेनज़ीर,
कोई और फूल, दिल
की धड़कनों में
पिरोने नहीं
देता। 

* *
- शांतनु सान्याल

02 नवंबर, 2023

कहीं वो ही न हो - -

फिर पा जंज़ीर चल
पड़ा हूँ तनहा,
सुना है
तेरी रौशन गली में
है तहरीक ए
अंधेरा।
फिर सज चले हैं
मीनाबाज़ार
शाम
ढले, फिर मुझे
तमाशबीनों
ने आ के
है घेरा।
बिछी है तमाम
रास्ते शतरंज
ए बिसात,
मोहरों
में कौन है सांप
और कौन
सपेरा।
कहना है मुश्किल
कहीं वो  ही
न हो
मेरा क़ातिल, जिसने
मुद्दतों से मेरे
आस्तीं पे
बना
रखा है अपना डेरा।

* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/

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