ज़िन्दगी अक्सर देती है दस्तक
कुछ लम्हों की सौगात लिए,
दहलीज़ पर हो तुम, या
चल रहा हूँ मैं नींद
में इक ख़्वाब
की दुनिया
अपने
साथ लिए, उठ रही है सुदूर नील
पर्वतों से अरण्य पुष्पों की
महक, इक अदृश्य
सांसों का पुल,
प्रसारित
है मुझ
से हो कर तुम तक, ठहरे हुए हैं -
मेघ दल सीने में दबी हुई
बरसात लिए, ज़िन्दगी
अक्सर देती है
दस्तक
कुछ
लम्हों की सौगात लिए । सुबह है
इक बंद लिफ़ाफ़ा पुरअसरार
तहरीरों का, इस रात की
है अपनी अलग ही
कहानी, कोई
गुमशुदा
शहर हो जैसे उजड़े हुए मंदिरों का,
फिर भी ज़िन्दगी को है यक़ीं,
क्षितिज पार है इक नयी
आस की दुनिया कहीं
न कहीं, चल रहा
हूँ मैं अधबुझे
अंगारों
पर उसे पाने की अनंत साध लिए,
ज़िन्दगी अक्सर देती है दस्तक
कुछ लम्हों की सौगात
लिए ।
* *
- - शांतनु सान्याल
28 मार्च, 2022
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-3-22) को "क्या मिला परदेस जाके ?"' (चर्चा अंक 4384)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
असंख्य धन्यवाद माननीया कामिनी जी, नमन सह ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आभार ।
हटाएंसुंदर सृजन, जीवन हर पल कुछ न कुछ नया लिए स्वागत करता है, हम कभी चूक जाते हैं कभी उससे हाथ मिला लेते हैं
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आदरणीया अनिता जी नमन सह ।
हटाएंसुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आदरणीया ।
हटाएंआशा और विश्वास की प्रेरणा देती सुंदर सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आदरणीया, नमन सह ।
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