21 फ़रवरी, 2022

किनारे - किनारे - -

बहोत ख़ामोश थे सभी जाने पहचाने
चेहरे, न जाने कहाँ गुम हो गए
रंगीन अक्स सारे, कभी
कहीं वो मिले तो पूछ
लेना ज़िन्दगी
का निचोड़
क्या
था, हर एक क़दम पर सुख दुःख के
नित नए समीकरण देखे, कभी
क्षितिज के ऊपर थे ख़्वाब,
और कभी शून्य में
थे डूबते हुए
सितारे,
बहोत ख़ामोश थे सभी जाने पहचाने
चेहरे, न जाने कहाँ गुम हो गए
रंगीन अक्स सारे । कौन, किस
मोड़ पर मिला और
न जाने किस
अनजान
कूचे
पर खो गया, चाँदनी में थी निखरी -
हुई गुल मोहर की परछाइयां,
कोई किसी का हम सफ़र
नहीं होता फिर भी
दिल फ़रेब हैं
ज़िन्दगी
की
अथाह गहराइयां, कुछ अधूरी सी है
अपनी कहानी, कुछ असमाप्त
से हैं चाहत तुम्हारे, बहोत
ख़ामोश थे सभी जाने
पहचाने चेहरे, न
जाने कहाँ
गुम
हो गए रंगीन अक्स सारे, फिर भी
चल रहे हैं हम जीवन नदी के
किनारे - किनारे - -
* *
- - शांतनु सान्याल
 








6 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-2-22) को "प्यार मैं ही, मैं करूं"(चर्चा अंक 4348)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. जी रहे जीवन की नियति का भावपूर्ण चित्रण
    बहुत ही अच्छी रचना
    बधाई

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  3. भावों से सराबोर बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही उम्दा व भावपूर्ण रचना ।

    जवाब देंहटाएं

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