28 नवंबर, 2018

सजल अभिलाष - -

उस निशीथ मौन के अंदर, बिखराव समेटे
मेरा मन, कच्ची मटकी तपने से पूर्व
जैसे देखे लाख सपन।  किसे ख़बर
कौन क्षितिज से उभरे बिहान
सतरंगी, ओस में डूबे हुए
हर पल मेरे चंचल
दिगंत - विहंगी।
कहीं कोई
फिर फूल खिले और सुरभित हो अंतरतम,
बुझे सभी आग्नेय अरण्य, मिले हर
एक साँस को जीने का वरदान 
कम से कम।

* *
- शांतनु सान्याल

  

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