अँधेरे के उसपार हैं कुछ उजालों के
फ़रेब ख़ूबसूरत, ज़िन्दगी हर
क़दम पे मांगे है अपना
ही अलग जुर्माना,
कोई ख़्वाब
का है
सौदागर, रात गहराए फेंके चाँदनी के
छल्ले, कोहरे के रास्ते है, उसका
रोज़ आना जाना। कांच के
पोशाक में सजते हैं
आधी रात,
मेरे
नाज़ुक अरमान, टूटते बिखरते यूँ ही -
गुज़रती है लहूलुहान ये रात, और
सुबह छीन लेती है हमेशा की
तरह कुछ बाक़ी मेरी
पहचान।
* *
- शांतनु सान्याल
फ़रेब ख़ूबसूरत, ज़िन्दगी हर
क़दम पे मांगे है अपना
ही अलग जुर्माना,
कोई ख़्वाब
का है
सौदागर, रात गहराए फेंके चाँदनी के
छल्ले, कोहरे के रास्ते है, उसका
रोज़ आना जाना। कांच के
पोशाक में सजते हैं
आधी रात,
मेरे
नाज़ुक अरमान, टूटते बिखरते यूँ ही -
गुज़रती है लहूलुहान ये रात, और
सुबह छीन लेती है हमेशा की
तरह कुछ बाक़ी मेरी
पहचान।
* *
- शांतनु सान्याल
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