बहोत कुछ उसने कहा
था यूँ ख़ामोश
निगाहों से
ताउम्र
आती रही सदायें, यूँ - -
ख़ानाबदोश राहों
से। उम्र की
तहरीर
थी कि बढ़ती रही दम -
ब - दम हाशिए तक
न पहुँच पाए
नूर उन
ख़्वाबगाहों से। हर एक
चेहरे पे था गोया
कोई इसरार
ए पोशीदा,
हमने
भी सीख लिया जीना
इन पागल हवाओं
से। रास्ता नहीं
मिलता है
कभी
मख़मली या मनचाहा,
जब दवा ख़ुद
निकल
आए
दिल के रिसते घाओं से,
ज़िन्दगी ख़ुद ब ख़ुद
उभर आती है दर्द
के पनाहों
से।
* *
- शांतनु सान्याल
था यूँ ख़ामोश
निगाहों से
ताउम्र
आती रही सदायें, यूँ - -
ख़ानाबदोश राहों
से। उम्र की
तहरीर
थी कि बढ़ती रही दम -
ब - दम हाशिए तक
न पहुँच पाए
नूर उन
ख़्वाबगाहों से। हर एक
चेहरे पे था गोया
कोई इसरार
ए पोशीदा,
हमने
भी सीख लिया जीना
इन पागल हवाओं
से। रास्ता नहीं
मिलता है
कभी
मख़मली या मनचाहा,
जब दवा ख़ुद
निकल
आए
दिल के रिसते घाओं से,
ज़िन्दगी ख़ुद ब ख़ुद
उभर आती है दर्द
के पनाहों
से।
* *
- शांतनु सान्याल
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