ज़िन्दगी इतनी भी मुश्किल
ज़ुबां नहीं, यूँ तो मैंने हर
इक सांस में जिया है
उनको अफ़सोस
यही कि,
उनके पास कोई तर्जुमा नहीं।
जिस्म ओ जां से उठ कर
रूह तक सुलगता रहा,
कहने को हद ए
नज़र रौशन
कोई शमा नहीं। सारी दुनिया
इक दायरा ए कूचे में सिमट
आई कौन कहता है कि
दिल में वजूद ए
आसमां नहीं।
सब कुछ तो है यहाँ फिर भी
वो उदास रहता है, भीड़
भरे शहर में शायद
उसका कोई
हमनवा
नहीं।
* *
- शांतनु सान्याल
ज़ुबां नहीं, यूँ तो मैंने हर
इक सांस में जिया है
उनको अफ़सोस
यही कि,
उनके पास कोई तर्जुमा नहीं।
जिस्म ओ जां से उठ कर
रूह तक सुलगता रहा,
कहने को हद ए
नज़र रौशन
कोई शमा नहीं। सारी दुनिया
इक दायरा ए कूचे में सिमट
आई कौन कहता है कि
दिल में वजूद ए
आसमां नहीं।
सब कुछ तो है यहाँ फिर भी
वो उदास रहता है, भीड़
भरे शहर में शायद
उसका कोई
हमनवा
नहीं।
* *
- शांतनु सान्याल
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