21 सितंबर, 2017

दरमियान ए असल ओ सूद - -

तमाम अशराफ़िया* उनकी महफ़िल -
में रहें मौजूद, हमारी दुनिया ख़ुश
है लरज़ते ज़मीन के बावजूद।
ख़ौफ़ज़दा रहें वो, जो हों
शीशमहल के 
रहने वाले,
हमारे इर्दगिर्द है पत्थरों की इक दिवार
लामहदूद। बियाबां में राह तलाशने
के, हैं हम जन्म से माहिर रूकती 
नहीं ये ज़िन्दगी,चाहे क़दम
रहें खूं आलूद। बिरादरी
है अपनी आबाद,
बर हस्ब, 
राह ऐ  फ़कीरी, वो उलझे रहें उम्र भर -
दरमियान ए असल ओ सूद।

* *
- शांतनु सान्याल 

* संभ्रांत लोग 

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