उसकी चाहत का मुतालबा,
ज़िन्दगी से है कहीं
ज़ियादा, बहुत
मुश्किल
है निभाना, मुख़्तसर उम्र में
इंतहाई वादा, जो भी हो
अंजाम ए सफ़र,
अब लौटना
नहीं
मुमकिन, हमने तो कर दिए
दस्तख़त बिन देखे, बिन
पहचाने ! कौन है
मुजरिम
और
कौन भला मासूम, दिल का भेद
ख़ुदा बेहतर जाने।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
mary maxam painting.jp.jpg
ज़िन्दगी से है कहीं
ज़ियादा, बहुत
मुश्किल
है निभाना, मुख़्तसर उम्र में
इंतहाई वादा, जो भी हो
अंजाम ए सफ़र,
अब लौटना
नहीं
मुमकिन, हमने तो कर दिए
दस्तख़त बिन देखे, बिन
पहचाने ! कौन है
मुजरिम
और
कौन भला मासूम, दिल का भेद
ख़ुदा बेहतर जाने।
* *
- शांतनु सान्याल
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