दीर्घ अंतराल के बाद मिलो हो तुम आज,
उम्र का तक़ाज़ा है, या बेवक़्त सिलवटें -
न रहा आईने को भी मुझसे कोई ऐतराज़,
न देख मुझे, यूँ हैरत भरी नज़र से दोस्त,
रोके रुकते नहीं बेरहम वक़्त के परवाज़,
तेरी निगाह में अब तलक है महक बाक़ी
क्या हुआ कि ज़माने से हूँ मैं नज़रअंदाज़,
न लौटने का सबब जो भी हो उनके साथ,
यूँ तो बेइंतहा हमने, दी थीं उन्हें आवाज़ !
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
असंख्य धन्यवाद मान्यवर।
जवाब देंहटाएं