अग्निशिखा :
शांतनु सान्याल : हिंदी / उर्दू कविताएं © It's subject to copyright.
13 मार्च, 2015
अभी अभी - -
अब जो भी हो मुझे
बेख़ुदी में,
रहने दे यूँ ही,
ये भरम
बरक़रार, कि अभी अभी मेरी -
पलकों पे है, झुकी हुई सी
तेरे रुख़ की परछाई,
अभी अभी
बेतरतीब टूट के बिखरे हों गोया
कुछ नाज़ुक बादलों के
साए, सुलगते
सीने में
फिर अचानक उभरा है कोई - -
लापता मरूद्यान !
* *
- शांतनु सान्याल
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