तुम्हारी सुबह मेरी सुबह से है अलग बहोत,
मेरे सामने हैं कुछ मिट्टी के बर्तन,
और एक अदद, काठ का
पहिया, तुम्हारे
सामने हैं
बिखरे हुए कांच के टुकड़े, और बेतरतीब - -
रेशमी कपड़े, कुछ बेरंग सिलवटें !
कुछ ख़्वाब बदगुमां, मुझसे
मुख़ातिब हैं कुछ
थकन भरे
चेहरे लेकिन शिकस्ता नहीं, जिस आख़री
छोर पे, तुम्हारा उड़ान पुल रुक
जाता है हाँपता हुआ, ठीक
उसी जगह से मेरा
सफ़र करता
है शंखनाद ! और यही वजह है कि मैं कभी
मिटता नहीं, कभी थकता नहीं, कभी
रुकता नहीं, कच्ची माटी की है
मेरी दुनिया, जिसे टूटने
का कोई ख़ौफ़
नहीं होता,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
Demetra Kalams Watercolors
मेरे सामने हैं कुछ मिट्टी के बर्तन,
और एक अदद, काठ का
पहिया, तुम्हारे
सामने हैं
बिखरे हुए कांच के टुकड़े, और बेतरतीब - -
रेशमी कपड़े, कुछ बेरंग सिलवटें !
कुछ ख़्वाब बदगुमां, मुझसे
मुख़ातिब हैं कुछ
थकन भरे
चेहरे लेकिन शिकस्ता नहीं, जिस आख़री
छोर पे, तुम्हारा उड़ान पुल रुक
जाता है हाँपता हुआ, ठीक
उसी जगह से मेरा
सफ़र करता
है शंखनाद ! और यही वजह है कि मैं कभी
मिटता नहीं, कभी थकता नहीं, कभी
रुकता नहीं, कच्ची माटी की है
मेरी दुनिया, जिसे टूटने
का कोई ख़ौफ़
नहीं होता,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
Demetra Kalams Watercolors