अहसास अबरी, साँस मद्धम, कभी तो
छू जा, तू मेरी मंजमद जज़्बात !
इक ज़माने से, लिए बैठे हैं -
दिल में, टूट कर
बिखरने
की ख़्वाहिश, न कर यूँ नज़र अंदाज़ -
कि बड़ी मुश्किल से कभी -
उभरते हैं, सहरा ए
आसमां पे
अब्र घुम्मकड़, रेत में दफ़न ख़्वाबों से
कभी कभी खिलते हैं गुल -
ख़ारदार, कि तेरी इक
नज़र में है
मोजूद,
उम्र भर की दुआओं का असर - -
* *
- शांतनु सान्याल
छू जा, तू मेरी मंजमद जज़्बात !
इक ज़माने से, लिए बैठे हैं -
दिल में, टूट कर
बिखरने
की ख़्वाहिश, न कर यूँ नज़र अंदाज़ -
कि बड़ी मुश्किल से कभी -
उभरते हैं, सहरा ए
आसमां पे
अब्र घुम्मकड़, रेत में दफ़न ख़्वाबों से
कभी कभी खिलते हैं गुल -
ख़ारदार, कि तेरी इक
नज़र में है
मोजूद,
उम्र भर की दुआओं का असर - -
* *
- शांतनु सान्याल
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