अशेष कहाँ, ये अभिलाष चिरंतन
उस छवि में निहित जीवन मरण,
प्रति पल प्रगाढ़ झंझावात, प्रति -
क्षण सम्मुख,एक खंडित दर्पण।
उदय अस्त, अहर्निश निरंतरता
पुष्पित मन, कभी बिन आवरण,
मृगजल या मायावी प्रणय गंध -
नीरव, कभी अधीर अंतःकरण।
तृषित नेत्र व्याकुल देखे चहुँ दिश
न ही निद्रित, न ही पूर्ण जागरण,
सत्य-असत्य या कोई दृष्टी भ्रम
अज्ञात यात्रा दे, पुनः आमन्त्रण ।
* *
- शांतनु सान्याल
उस छवि में निहित जीवन मरण,
प्रति पल प्रगाढ़ झंझावात, प्रति -
क्षण सम्मुख,एक खंडित दर्पण।
उदय अस्त, अहर्निश निरंतरता
पुष्पित मन, कभी बिन आवरण,
मृगजल या मायावी प्रणय गंध -
नीरव, कभी अधीर अंतःकरण।
तृषित नेत्र व्याकुल देखे चहुँ दिश
न ही निद्रित, न ही पूर्ण जागरण,
सत्य-असत्य या कोई दृष्टी भ्रम
अज्ञात यात्रा दे, पुनः आमन्त्रण ।
* *
- शांतनु सान्याल
कल कल कमल दल कोमल जल कंत..,
जवाब देंहटाएंरागन रागारुण तल रज ऋतु राज बसंत..,
शीत सुरभित मंद सन-सन सरण सुहाए..,
रति कांत अनल के सिद्ध सहाए ऋतु राय.....
कल कल कमल दल कोमल जल कंत..,
जवाब देंहटाएंरागन रागारुण तल रज ऋतु राज बसंत..,
शीत सुरभित मंद सर-सर सरयु सुहाए..,
रति कांत अनल के सिद्ध सहाए ऋतु राय.....
असंख्य धन्यवाद प्रिय मित्र
जवाब देंहटाएं