13 फ़रवरी, 2013

अभिलाष चिरंतन - -


अशेष कहाँ, ये अभिलाष चिरंतन
उस छवि में निहित जीवन मरण,
प्रति पल प्रगाढ़ झंझावात, प्रति -
क्षण सम्मुख,एक खंडित दर्पण।

उदय अस्त, अहर्निश निरंतरता
पुष्पित मन, कभी बिन आवरण,
मृगजल या मायावी प्रणय गंध -
नीरव, कभी अधीर अंतःकरण।

तृषित नेत्र व्याकुल देखे चहुँ दिश
न ही निद्रित, न ही पूर्ण जागरण,
सत्य-असत्य या कोई दृष्टी भ्रम
अज्ञात यात्रा दे, पुनः आमन्त्रण ।
* *
- शांतनु सान्याल
 

3 टिप्‍पणियां:

  1. कल कल कमल दल कोमल जल कंत..,
    रागन रागारुण तल रज ऋतु राज बसंत..,
    शीत सुरभित मंद सन-सन सरण सुहाए..,
    रति कांत अनल के सिद्ध सहाए ऋतु राय.....

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  2. कल कल कमल दल कोमल जल कंत..,
    रागन रागारुण तल रज ऋतु राज बसंत..,
    शीत सुरभित मंद सर-सर सरयु सुहाए..,
    रति कांत अनल के सिद्ध सहाए ऋतु राय.....

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