इक रौशनी जो कर जाए अंतःकरण तक
रौशन, इक बूंद जो तेरी अनुकंपित
निगाह से टपके, कर जाए
जीवन मुक्कमल,
हर साँस में
हो जैसे
तेरा अक्स निहित, कि किसीका दर्द ओ -
ग़म न हो मुझसे जुदा, ये अहसास
न मुरझाये कभी कि इक
इंसानियत ही है
आला तरीन
मज़हब,
बाक़ी किताबों की बातें रहने दे सुनहरी - -
सफ़ात में बंद, ख़ूबसूरत जिल्द
के मानी नहीं कि दास्तां
ए ज़िन्दगी भी होगी
दिलकश !
* *
- शांतनु सान्याल
रौशन, इक बूंद जो तेरी अनुकंपित
निगाह से टपके, कर जाए
जीवन मुक्कमल,
हर साँस में
हो जैसे
तेरा अक्स निहित, कि किसीका दर्द ओ -
ग़म न हो मुझसे जुदा, ये अहसास
न मुरझाये कभी कि इक
इंसानियत ही है
आला तरीन
मज़हब,
बाक़ी किताबों की बातें रहने दे सुनहरी - -
सफ़ात में बंद, ख़ूबसूरत जिल्द
के मानी नहीं कि दास्तां
ए ज़िन्दगी भी होगी
दिलकश !
* *
- शांतनु सान्याल