अनुसंधानी नेत्र
जीवन के कुछ अभिनव अर्थ
अनदेखे गंतव्य, बनाते
हैं मुझे प्रवासी पंछी,
यायावर सोच
भटकती है भूल भुलैया की
सीड़ियों से हो कर कहीं,
अन्तरिक्ष के शून्य
में खोजती हैं
आँखें
जन्म मृत्यु के रहस्य, दिन व
रात की चीख, जीने की
अदम्य, उत्कंठित
गहराई,
रूप रंग से परे एक भू प्रदेश,
घृणा, पूर्वाग्रह विहीन एक
धरातल, जहाँ स्वप्न
खिलते हों
निशि पुष्प की तरह, ओष में
भीगते हों भावनाएं, शेष
प्रहर में झरते हों
पारिजात,
ह्रदय में जागे जहाँ उपासना
पारदर्शी हों रिश्तों के
आवरण, स्वर्णिम
मुस्कानों
से झरे मानवता की दीप्ति,
मौलिक प्रणय गंध में
समाहित हों जहाँ
निश्वार्थ
अंतर्मन, हर कोई महसूस करे
भीगी पलकों की तरलता,
कम्पित मन की
व्यथा,
मुखौटा विहीन परिपूर्ण धरा.
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंthanks respected vandana di - regards
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