ले चलो फिर मुझे धूमकेतु के पथ से
गुज़र कर निहारिकाओं के
शहर में, ऊब चूका हूँ
मैं दिन रात के
दहन से,
वही आंसू वही सिसकियाँ, फ़रेब के
रेशमी फंदे, रिश्तों के हाट
न जाने कितनी बार
लोग परखेंगे
मुझे,
वो जो बहती जा रही है जीवन नौका
बिन माझी बिन मस्तूल, रोक
भी लो मेरी सांसें बिखरने
से पहले, कोहरों ने
शर्त रखी है
डूबाने की ख़ातिर, इक रात ही की बात
है, खोल भी दो इत्र की शीशी
बिखर जाने दो प्रणय
गंध, भूल जाएँ
घने धुंध
रास्ता, मुड़ जाएँ शायद अन्य दिशा में,
नींद में जैसे चलतीं हों परछाइयाँ
हूँ मैं आवरणहीन फिर भी
न जाने तुम चाह कर
भी नहीं चाहते मेरा
व्यक्तित्व
छूना,
मैं शीशा नहीं कि टूट जाऊं ज़रा सी -
ठेस से, कभी तो करो स्पर्श
कि ज़िन्दगी है बुझी
सलाख सी, इक
अधूरी प्यास
सी.
-- शांतनु सान्याल
गुज़र कर निहारिकाओं के
शहर में, ऊब चूका हूँ
मैं दिन रात के
दहन से,
वही आंसू वही सिसकियाँ, फ़रेब के
रेशमी फंदे, रिश्तों के हाट
न जाने कितनी बार
लोग परखेंगे
मुझे,
वो जो बहती जा रही है जीवन नौका
बिन माझी बिन मस्तूल, रोक
भी लो मेरी सांसें बिखरने
से पहले, कोहरों ने
शर्त रखी है
डूबाने की ख़ातिर, इक रात ही की बात
है, खोल भी दो इत्र की शीशी
बिखर जाने दो प्रणय
गंध, भूल जाएँ
घने धुंध
रास्ता, मुड़ जाएँ शायद अन्य दिशा में,
नींद में जैसे चलतीं हों परछाइयाँ
हूँ मैं आवरणहीन फिर भी
न जाने तुम चाह कर
भी नहीं चाहते मेरा
व्यक्तित्व
छूना,
मैं शीशा नहीं कि टूट जाऊं ज़रा सी -
ठेस से, कभी तो करो स्पर्श
कि ज़िन्दगी है बुझी
सलाख सी, इक
अधूरी प्यास
सी.
-- शांतनु सान्याल
मैं शीशा नहीं कि टूट जाऊं ज़रा सी -
जवाब देंहटाएंठेस से, कभी तो करो स्पर्श
कि ज़िन्दगी है बुझी
सलाख सी, इक
अधूरी प्यास
सी... waah
tahe dil se shukriya rashmi ji
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