नज़्म
आसां नहीं था आग की लपटों से खेलना,मुझे मालूम है ज़िन्दगी
की हकीक़त,कि तुम दुनिया से
अलहदा नहीं, वही अंदाज़े वफ़ा
वही रश्मे उल्फ़त, निभाए जाओ -
ज़माने से छुप के न मिला करो
ज़हर उतरे जिगर के पार इक ही
बार, बढ़ा के प्याले लबों तक यूँ
साफ़गोई से हाथ छुड़ाया न करो,
रिश्तों को ज़रा सा बहलाए जाओ -
-- शांतनु सान्याल
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