भीगी भीगी सी फ़िज़ा, उभरे हैं फिर
कुछ बूंदें,बिखरती हैं रह रह न जाने
क्यूँ शीशायी अहसास, दिल चाहे कि
थाम लूँ टूटती दर्द की लड़ियाँ, ग़र
तुम यक़ीन करो ये शाम झुक चली
है, फिर घनी पलकों तले, सज चले
कुछ बूंदें,बिखरती हैं रह रह न जाने
क्यूँ शीशायी अहसास, दिल चाहे कि
थाम लूँ टूटती दर्द की लड़ियाँ, ग़र
तुम यक़ीन करो ये शाम झुक चली
है, फिर घनी पलकों तले, सज चले
हैं ख़्यालों में कहीं, उजड़े मरूद्यान
मांगती है ज़िन्दगी जीने का कोई
नया बहाना, चलो फिर से करें इक
बार दश्तख़त, है ये रात सुलहनामा,
मांगती है ज़िन्दगी जीने का कोई
नया बहाना, चलो फिर से करें इक
बार दश्तख़त, है ये रात सुलहनामा,
-- शांतनु सान्याल
मांगती है ज़िन्दगी जीने का कोई
जवाब देंहटाएंनया बहाना, चलो फिर से करें इक
बार दश्तख़त, है ये रात सुलहनामा,...waah
दिल की गहराइयों से शुक्रिया
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