इस ज़मीं का आसमां कोई नहीं,
खिलते हैं गुल ओ ज़ोहर दिलकश
अंदाज़ लिए, ज़माने को फुरसत ही
नहीं कि देखें इक नज़र के लिए,
वहीँ रुकी सी हैं तमाम फ़सले बहार
तरसतीं हैं निगाह दर्दे असर के लिए,
न जाने किस मक़ाम पे बरसतीं हैं
बदलियाँ, मुद्दतों ज़मीं तर देखा नहीं,
कोई सबब शायद उन्हें मुस्कुराने नहीं
देतीं,वरना चाहत में कमी कुछ भी न थीं !
-- शांतनु सान्याल
गुज़रीं हैं बादे सबा अक्सर उदास सी
जवाब देंहटाएंइस ज़मीं का आसमां कोई नहीं,
खिलते हैं गुल ओ ज़ोहर दिलकश
अंदाज़ लिए, ज़माने को फुरसत ही
नहीं कि देखें इक नज़र के लिए, kya baat hai !
न जाने किस मक़ाम पे बरसतीं हैं
जवाब देंहटाएंबदलियाँ, मुद्दतों ज़मीं तर देखा नहीं,
वाह्…………शानदार भाव संग्रह्।
lot of thanks vandana ji, rashmi ji - love and regards with respect
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