ला उन्वान
इन ख़ून की बूंदों में न कर तलाशअक्शे ख़ुदा, हर दर्द भरी चीख में
है शामिल ज़िन्दगी, ये टूट के
आँखों से जो गिरती हैं बूंदें इनमें
हैं अनदेखे ख़्वाब कई, न कर
बर्बाद कि बड़ी मुश्किल से उठी
हैं साँसें इक नयी सुबह के लिए, न
दे अज़ाब इन खिलते फूलों को
ये हैं तो हर सै में हैं ख़ुशी के मानी
तू जीत भी ले ग़र सारी दुनिया
दिल की विरानगी को आबाद न
कर पायेगा, आग नहीं जानता
अपना पराया, न झुलस जाय कहीं
ख़ुद का घर, बस्ती सुलगने से
पहले, अक़ीदत जो न समझ पाए
जज़्बा-ए- इंसानियत, ऐसे राहे
फ़लसफ़ा से आख़िर क्या हासिल,
-- शांतनु सान्याल
ला उन्वान - शीर्षक विहीन
अज़ाब - शाप
अक़ीदत - श्रद्धा
Hurrah, that's what I was looking for, what a data! present here at this weblog, thanks admin of this web page.
जवाब देंहटाएंFeel free to visit my weblog ... home page